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नज़्म
तितलियाँ अपने परों पर पा के क़ाबू हर तरफ़
सेहन-ए-गुलशन की रविश पर रक़्स फ़रमाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
जो चलता है तो क़दमों की कोई आहट नहीं होती
तलाश-ए-फ़र्क़-ए-नेक-ओ-बद की ख़्वाहिश को लिए दिल में
फ़ैसल हाशमी
नज़्म
सो फ़लक ने यूँ किया देहली को तो पामाल-ए-जौर
और किया वक़्फ़-ए-जफ़ा हर-बर्ग-ओ-बार-ए-लखनऊ
हकीम आग़ा जान ऐश
नज़्म
आह लेकिन कौन जाने कौन समझे जी का हाल
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़ुद अपने चारागर से हाल-ए-सई-ए-रायगाँ कहूँ
कहूँ कि क्यूँ फ़सुर्दगी है ख़ेमा-ज़न बहार में
शाहिद मलिक
नज़्म
सच है असरार-ए-हक़ीक़त का ख़ज़ाना तू है
हाल-ओ-मुस्तक़बिल-ओ-माज़ी का ज़माना तू है
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
ऐ कि दिल तेरा है फ़िक्र-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम में
ज़हर भी होता है अक्सर ख़ूबसूरत जाम में
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
वो जिन में मुल्क-ए-बर्क़-ओ-बाद तक तस्ख़ीर होता है
जहाँ इक शब में सोने का महल तामीर होता है