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नज़्म
कुछ दिनों गाँव की गलियों में उदासी होगी
कुछ दिनों खुल न सके होंगे तिरे हार सिंघार
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
कुछ दिनों गाँव की गलियों में उदासी होगी
कुछ दिनों खिल न सके होंगे मिरे हार-सिंघार
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
ज़रा से एक पंक्चर से बिगड़ता है सिंघार इस का
हवा पर जिस की हस्ती हो भला क्या ए'तिबार उस का