aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "haklaa"
मगर सरमगर क्या क्यूँ हकला रहे हो बताओ मुझे
सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता हैसुना है शेर का जब पेट भर जाए तो वो हमला नहीं करता
तिश्ना रूहों के हवसनाक तअ'य्युश के लिएहजला-ए-संग में पाबंद बना रख्खा हो
हमला जब क़ौम-ए-आर्या ने कियाऔर बजा उन का हिन्द में डंका
ग़ैर ज़ोम और ख़ुदी से जो करेगा हमलामेरी इमदाद को ख़ुद ज़ात-ए-ख़ुदा आएगी
हम जीतेंगेहक़्क़ा हम इक दिन जीतेंगे
हुज़ूर के हजला-ए-मोअत्तर में ज़िंदगी ख़ून रो गई हैपड़ा हुआ है जहाँ ये लाशा
ग़नीम-ए-नूर का हमला कहो अंधेरों परदयार-ए-दर्द में आमद कहो मसीहा की
फ़ज़ा में एक हाला सा जहाँ हैयही तो मसनद-ए-पीर-ए-मुग़ाँ है
दश्त-ए-ग़ुर्बत में किसी हजला-नशीं का महमिलएक दिन रूह का हर तार सदा देता था
लोग कहते हैं ये अम्न की जंग हैअम्न की जंग में हमला-आवर
इक नया अरमाँ नई उम्मीद पैदा हो चलीहजला-ए-सीमीं से तू भी पीला-ए-रेशम निकल
लिख्खा है तिरे रूप का हालाऔर किसी के गिर्द सजा है
उस पर बिलबिला कर हमला करनामैं भी चाहती हूँ... उसे ऐसे ही
जैसे मैं अपने से बाग़ी हो गया हूँअपने ही ऊपर मैं हमला कर रहा हूँ
निगार-ए-निकहत ने हजला-ए-गुल का पर्दा पर्दा दिया हैवो होंट आवाज़ दे रहे हैं
कि उसी पे हमला है रात का
जब एक हमला-ए-दिल तुम पे ज़ुल्म करता थाअज़ीम शहर के मरकज़ में इक उदास सा घर
हजला-ए-नाज़ से आते हैं बुलावे अब केआख़िरी बार चलो आख़िरी दीदार करो
फ़ज़ा का मेहरबाँ हाला पिघलता जा रहा हैआसमाँ ताँबे में ढलता जा रहा है
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