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नज़्म
मोहम्मद इज़हारुल हक़
नज़्म
मुझे जाना है इक दिन तेरी बज़्म-ए-नाज़ से आख़िर
अभी फिर दर्द टपकेगा मिरी आवाज़ से आख़िर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
देख कर ये शाम के नज़्ज़ारा-हा-ए-दिल-नशीं
क्या तिरे दिल में ज़रा भी गुदगुदी होती नहीं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अगर तेरी तमन्ना है कि शायान-ए-ख़िलाफ़त हो
तो शौक़-ए-बंदगी-ए-वाहिद-ए-क़हहार पैदा कर
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
मगर अब तक तरीक़-ए-बंदगी मुझ को नहीं आया
मिरे जज़्बों ने अब तक जज़्ब के मा'नी नहीं सीखे
सलमान बासित
नज़्म
रूह महव-ए-बंदगी है ज़िंदगी मस्जूद है
अब मैं समझा हूँ कि दो-आलम का क्या मक़्सूद है