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नज़्म
चमकते हुए सब बुतों को मिटा दो
कि अब लौह-ए-दिल से हर इक नक़्श हर्फ़-ए-ग़लत की तरह मिट चुका है
फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी
नज़्म
मैं हूँ तस्वीर-ए-वफ़ा मुझ से गुरेज़ाँ क्यों है
इश्क़ की लौह पे क्या मैं हूँ कोई हर्फ़-ए-ग़लत
सादिक़ा फ़ातिमी
नज़्म
दिल कोई हर्फ़-ए-ग़लत बन के मिटा जाता है
और हर साँस गिराँ-बार-ओ-पशेमान भी है
मोहम्मद शामिमुज्जामा
नज़्म
अपने हम-जिंसों की बे-मेहरी से मायूस-ओ-मलूल
सफ़्हा-ए-हस्ती पर इक सत्र-ए-ग़लत हर्फ़-ए-फ़ुज़ूल
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
यहीं की थी मोहब्बत के सबक़ की इब्तिदा मैं ने
यहीं की जुरअत-ए-इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ मैं ने