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नज़्म
ज़ौक़-ए-सफ़र घटा न दे लोग कहें जो ना-समझ
हासिल-ए-मुद्दआ को भी परतव-ए-मुद्दआ समझ
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
यहीं की थी मोहब्बत के सबक़ की इब्तिदा मैं ने
यहीं की जुरअत-ए-इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ मैं ने
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जो बयाँ इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ पर ख़त्म हो
उस की बिल्कुल मुख़्तसर तम्हीद होनी चाहिए
मयकश अकबराबादी
नज़्म
जो बयाँ इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ पर ख़त्म हो
उस की बिल्कुल मुख़्तसर तम्हीद होनी चाहिए
मैकश हैदराबादी
नज़्म
हक़ीक़त का तक़ाज़ा है हो दिल को जुस्तुजू पहले
हुसूल-ए-मुद्दआ को चाहिए कुछ आरज़ू पहले
नारायण दास पूरी
नज़्म
हुरमतुल इकराम
नज़्म
बरस रही है गुल-ए-मुद्दआ' पे शबनम-ए-कैफ़
यही नशात के दिन हैं यही है आलम-ए-कैफ़
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
ये सब था लेकिन जुनूँ पे कुछ ऐसी क़दग़नें थीं
कि जज़्ब-ए-दिल हर्फ़-ए-मुद्दआ' को न पा सका था
अर्श सिद्दीक़ी
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं