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नज़्म
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तब्ल-ओ-अलम है पास अपने न मुल्क-ओ-माल
और फिर कोई बहुत ख़ास चीज़ ही होनी चाहिए तुम्हें नज़र करने को तो
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
उसी की सर-बुलंदी से वतन की सर-बुलंदी है
मैं एहसास-ए-वक़ार-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत पेश करता हूँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
दयार-ए-हिन्द ने जिस दम मिरी सदा न सुनी
बसाया ख़ित्ता-ए-जापान ओ मुल्क-ए-चीं मैं ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रवा-दारी, उख़ुव्वत, दोस्ती, ईसार, हमदर्दी
ख़्याल-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, दर्द-ए-क़ौम, अंदेशा-ए-फ़र्दा
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
उस की अज़्मत के शवाहिद चार जानिब हैं अयाँ
है हर इक ज़र्रे के दिल में मालिक-ए-मुल्क-ए-जहाँ
मोहम्मद असदुल्लाह
नज़्म
दुख़्तरान-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत रक़्स फ़रमाती रहीं
इस नई तहज़ीब में कल्चर इसी का नाम है