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नज़्म
बलराज कोमल
नज़्म
जिस तरह हाथ की पोरों पे कभी
पहले पहले से किसी तजरबा-ए-लम्स-ए-मोहब्बत का असर खुलता है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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जिस तरह हाथ की पोरों पे कभी
पहले पहले से किसी तजरबा-ए-लम्स-ए-मोहब्बत का असर खुलता है