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नज़्म
क़ौम को इस शान-ओ-शौकत से तुम्हारी क्या मिला
दो जवाब इस का अगर रखती हो यारा-ए-मक़ाल
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
हम ने तुम्हारी सब की सब क़ुव्वतों का फ़ैसला किया था
क़ील-ओ-क़ाल की गुंजाइश बाक़ी नहीं है
आशुफ़्ता चंगेज़ी
नज़्म
पर न मुझ से पूछना मेरे दिल-ए-महज़ूँ का हाल
हम-नशीनो शाक़ गुज़रेगी ये वर्ना क़ील-ओ-क़ाल
टीका राम सुख़न
नज़्म
ऐ अदब ना-आश्ना ये भी नहीं तुझ को ख़याल
नंग है बज़्म-ए-सुख़न में मदरसे की क़ील-ओ-क़ाल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ज़ेब-ए-दीवाँ ही नहीं हर-क़ाश-ए-दिल पर नक़्श है
हर्फ़-ए-क़ौल-ए-'आरज़ू' लफ़्ज़-ए-मक़ाल-ए-'आरज़ू'
मासूम शर्क़ी
नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था