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नज़्म
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
मेरे तख़्ईल में रह रह के झलक उठती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुहीब फाटकों के डोलते किवाड़ चीख़ उठे
उबल पड़े उलझते बाज़ुओं चटख़ती पिस्लियों के पुर-हिरास क़ाफ़िले
मजीद अमजद
नज़्म
जब किसानों की निगाहों से टपकता है हिरास
फूटने लगती है जब मज़दूर के ज़ख़्मों से यास
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
उबल पड़े उलझते बाज़ुओं चटख़ती पसलियों के पुर-हिरास क़ाफ़िले
गिरे बढ़े मुड़े भँवर हुजूम के
मजीद अमजद
नज़्म
अज़रा की ये दुआ है कि आ जाए रटना रास
हर ज़ेहन में है ख़ौफ़ तो हर दिल में है हिरास