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नज़्म
तेरे फ़ितरी रक़्स को ज़ंजीर-ए-पा किस ने किया
हुस्न-ए-बे-परवा को पाबंद-ए-हया किस ने किया
शमा ज़फर मेहदी
नज़्म
या तबस्सुम है किसी के चेहरा-ए-ज़ेबा का तू
या कि नक़्श-ए-अव्वलीं है हुस्न-ए-बे-परवा का तू
साक़िब कानपुरी
नज़्म
तो उस ने चश्म-ए-बे-पर्वा के हल्के से इशारे से मुझे रोका
और अपनी ज़ुल्फ़ को माथे पे लहराते हुए पूछा
अर्श सिद्दीक़ी
नज़्म
भला उन की तलाफ़ी वादा-ए-रंगीं से क्या होगी
ख़ुदा-ए-दो-जहाँ है तू भी कितना शोख़-ओ-बे-परवा
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
हुस्न-ए-बे-मिस्ल को जिस के न अजल है न ज़वाल
कम-सिनी पर मिरी माइल है तबीअ'त तेरी
ग़ुलाम भीक नैरंग
नज़्म
तोले हुए है तेग़-ओ-सिनाँ हुस्न-ए-बे-नक़ाब
नावक-फ़गन है जल्वा-ए-पिन्हान-ए-लखनऊ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इस लिए मुझ से न पूछो कि सफ़-ए-याराँ में
क्यूँ ये दिल बे-हुनर-ओ-हुस्न-ओ-तमीज़ इतना है
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
गूँजती है जब फ़ज़ा-ए-दश्त में बाँग-ए-रहील
रेत के टीले पे वो आहू का बे-परवा ख़िराम