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नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अपने मज़हब के मसाइल से तबीअ'त थी नुफ़ूर
रहते थे ज़िक्र-ए-बुतान-ए-सीम-तन की धुन में चूर
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
बुतान-ए-रंग-ओ-ख़ूँ को तोड़ कर मिल्लत में गुम हो जा
न तूरानी रहे बाक़ी न ईरानी न अफ़्ग़ानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तेरे नग़्मों में नशात-ए-ज़िंदगी की है महक
कैफ़ से गुल का तबस्सुम ज़िक्र-ए-दिल हुस्न-ए-बुताँ
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
गोलकुंडा हुसन-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का दयार
अज़मत-ए-अफ़साना-ए-हस्ती की ज़िंदा यादगार
ख़ुर्शीद अहमद जामी
नज़्म
सदा दो अंजुम-ए-अफ़्लाक रक़्स फ़रमाएँ
बुतान-ए-काफ़िर-ओ-सफ़्फ़ाक रक़्स फ़रमाएँ