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नज़्म
मैं उन्हीं हुस्न-परस्तों की हूँ तड़पाई हुई
तुझ से कहने को ये राज़ आई हूँ घबराई हुई
शकील बदायूनी
नज़्म
आह क्या क्या आज-कल रंगीनियाँ देहली में हैं
रास्तों पर चलती-फिरती बिजलियाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
मैं ने जो ज़ुल्म कभी तुझ से रवा रक्खा था
आज उसी ज़ुल्म के फंदे में गिरफ़्तार हूँ मैं
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
चाँद की नज़्र किए मैं ने नज़र के सज्दे
हुस्न-ए-मासूम के जल्वों का परस्तार रहा
नज़ीर मिर्ज़ा बर्लास
नज़्म
बहार-ए-हुस्न का तू ग़ुंचा-ए-शादाब है सलमा
तुझे फ़ितरत ने अपने दस्त-ए-रंगीं से सँवारा है