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नज़्म
फ़र्दा महज़ फ़ुसूँ का पर्दा, हम तो आज के बंदे हैं
हिज्र ओ वस्ल, वफ़ा और धोका सब कुछ आज पे रक्खा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
तितलियाँ अपने परों पर पा के क़ाबू हर तरफ़
सेहन-ए-गुलशन की रविश पर रक़्स फ़रमाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
यही वो मंज़िल-ए-मक़्सूद है कि जिस के लिए
बड़े ही अज़्म से अपने सफ़र पे निकले थे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ज़ेब उस्मानिया
नज़्म
इक तमाशे की तरह वक़्त पे उर्यां होते
अपनी ख़्वाहिश को सर-ए-बज़्म न रुस्वा करते
मोहम्मद अफ़सर साजिद
नज़्म
चश्म-ए-हक़-बीं के लिए इबरत के नज़्ज़ारे मिले
हस्ती-ए-इंसान पे जो ज़िंदगानी देख कर
मयकश अकबराबादी
नज़्म
मोहब्बत जिस पे क़ाएम इम्बिसात-ए-ग़ैर-फ़ानी है
मोहब्बत जिस से वाबस्ता नशात-ए-जावेदानी है
ऋषि पटियालवी
नज़्म
गए गुलशन पे ग़ैरों के तो मौज-ए-रंग-ओ-बू बन कर
हर इक गुलशन से हम को भी निदा-ए-ख़ुश-गवार आई