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नज़्म
और आबादी में तू ज़ंजीरी-ए-किश्त-ओ-नख़ील
पुख़्ता-तर है गर्दिश-ए-पैहम से जाम-ए-ज़िंदगी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जिन्हें मुज़्महिल दिलों ने अबदी पनाह जाना
थके-हारे क़ाफ़िलों ने जिन्हें ख़िज़्र-ए-राह जाना
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हिन्दियों के जिस्म में क्या रूह-ए-आज़ादी न थी
सच बताओ क्या वो इंसानों की आबादी न थी
जोश मलीहाबादी
नज़्म
कुश्ता-ए-उज़लत हूँ आबादी में घबराता हूँ मैं
शहर से सौदा की शिद्दत में निकल जाता हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सोते हैं ख़ामोश आबादी के हंगामों से दूर
मुज़्तरिब रखती थी जिन को आरज़ू-ए-ना-सुबूर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये शादी ख़ाना-आबादी हो मेरे मोहतरम भाई
मुबारक कह नहीं सकता मिरा दिल काँप जाता है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये माना चाँद पर इस वक़्त आबादी नहीं लेकिन
किसी दिन हम वहाँ जा कर नई बस्ती बसाएँगे