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नज़्म
पल दो पल में कुछ कह पाया इतनी ही स'आदत काफ़ी है
पल दो पल तुम ने मुझ को सुना इतनी ही ‘इनायत काफ़ी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये इमारात ओ मक़ाबिर ये फ़सीलें ये हिसार
मुतलक़-उल-हुक्म शहंशाहों की अज़्मत के सुतूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
सबक़ फिर पढ़ सदाक़त का अदालत का शुजाअ'त का
लिया जाएगा तुझ से काम दुनिया की इमामत का