aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ikaa.ii"
गुज़रता है या थमा हुआ हैइकाई है या बटा हुआ है
कोई इकाईशजर हजर हो कि ज़ी-नफ़्स हो
फिर दरस-ए-मुसावात की हाजत है जहाँ कोआक़ाई-ओ-ख़िदमत के ख़िताबात बदल डाल
इक इकाई पर उसी की ज़र्ब सेकसरत-ए-वहदत का पैदा है तिलिस्म
यूँ भी हुआ दहाई इकाई में ढल गईख़ुर्शीद के अलाव में हर शय पिघल गई
मुंदमिल हुआ लेकिनरोग की इकाई तो
इक इकाई था वोऔर इक दिन ख़ुद अपनी इकाई में ज़म हो गया
एक ख़लिया हूँ मैंज़िंदगी की इकाई हूँ मैं
मुंतशिर ख़यालों के बोझ अपने दिल-ए-हज़ीं परउठाए फिरती हुई इकाई
नफ़ी इसबात के इस विसाल मेंतुम्हारी इकाई तो मैं हूँ!
ज़िंदगीइकाई में इकाई के जम्अ का अमल
गले मिल के नाचेंगेताज़ा इकाई की सूरत
मेहर-ओ-मह अर्ज़-ओ-समा रूह बदन भी या'नीआख़िरश एक इकाई में सिमट जाएँगे
मेरी मौरूसियत की जड़ों में हर इक साँस लेती इकाई के ख़लियों की मिट्टी बनेरीढ़ की मरकज़ी जालियों में अजाइब-कदों का ख़ज़ाना छुपे
सिर्फ़ इतना कहूँमैं इकाई-गज़ीदा सर-ए-अंजुमन
मैं फ़क़त जिस्म नहीं ज़ह्न भी हूँमैं इकाई हूँ मुकम्मल मुझे तस्लीम करो
बे-कराँ वुस'अत समेटेइक इकाई
लो मैं एक इकाई हूँपत्थर के टुकड़े की तरह एक इकाई
चेहरों के गिर्दाब में हर-सूजिन में इकाई फँसी हुई है
हर इकाई रवाँ अपने मरकज़ की सम्तदूध का पेड़ सूखा कि सारे अलामात
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