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नज़्म
मेरी महबूब उन्हें भी तो मोहब्बत होगी
जिन की सन्नाई ने बख़्शी है उसे शक्ल-ए-जमील
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रूह क्या होती है इस से उन्हें मतलब ही नहीं
वो तो बस तन के तक़ाज़ों का कहा मानते हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुझ से अब मेरी मोहब्बत के फ़साने न कहो
मुझ को कहने दो कि मैं ने उन्हें चाहा ही नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अयाँ हैं दुश्मनों के ख़ंजरों पर ख़ून के धब्बे
उन्हें तू रंग-ए-आरिज़ से मिला लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
धर्म क्या उन का था, क्या ज़ात थी, ये जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
झाड़ियाँ जिन के क़फ़स में क़ैद है आह-ए-ख़िज़ाँ
सब्ज़ कर देगी उन्हें बाद-ए-बहार-ए-जावेदाँ