aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हर कोई काफ़िर-गरों में नफ़रा-ओ-नम्माम हैमेरी आँखें देखती हैं उन का जो अंजाम है
इल्म से बढ़ के कुछ भी जहाँ में नहींफूल ऐसा कोई गुल्सिताँ में नहीं
हर-नफ़स पर हम मिज़ाज-ए-बाग़बाँ देखा किएयास की नज़रों से अपना आशियाँ देखा किए
हमारी चाहतों की बुज़-दिली थीवर्ना क्या होता
जब तक अदब-बरा-ए-अदब का रहा ख़यालअदबार-ओ-मुफ़लिसी से रहे हम शिकस्ता-हाल
आईना-ए-ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत यहाँ थे रामअम्न और शांति की ज़मानत यहाँ थे राम
बार-हा ऐसी तन्हाइयों मेंकि जब तीरगी बोल उठे
मुझे बे-रहम हस्ती के ज़ियाँ-ख़ाने में क्यूँ भेजा गयाक्यूँ हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में रख दी गईं बे-ताबियाँ मेरी
काली, जगमगाती, निराली रातेंरस भरी, मदमाती रातें
आज के नामऔर
मोहब्बत ख़ालिक़-ए-हर-दो-जहाँ हैमोहब्बत दीन-ए-फ़ितरत की ज़बाँ है
बनाया था चिड़िया ने इक घोंसलाकि वो एक घर के था छत में बना
ख़यालात में सख़्त है इंतिशारतख़य्युल परेशाँ क़लम बे-क़रार
क्या मेरी आँखों में सन्नाटा हैनहीं बर्फ़-बारी हो रही है
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगीवो किन ख़्वाबों से जाने आश्ना ना-आश्ना होगी
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