aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "iqbal bano"
ऐ वतन ऐ मिरे बहिश्त-ए-बरीँक्या हुए तेरे आसमान ज़मीं
ऐ सिपहर-ए-बरीं के सय्यारोऐ फ़ज़ा-ए-ज़मीं के गुल-ज़ारो
मेरी आँख में ठहराइस तरह के
मुजाहिदाना हरारत रही न सूफ़ी मेंबहाना बे-अमली का बनी शराब-ए-अलस्त
अलिफ़ अना को काट दियाअपने साए पर औंधा गिरने वाला
अब्बा तो चले गए हैं दफ़्तरअम्मी को बुख़ार आ रहा है
उस ने देखावो अकेला अपनी आँखों की अदालत में
वक़्त का तुम पर क्या असरकि तुम्हारी आँखें
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरीज़िंदगी शम्अ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी!
उर्दू है मिरा नाम मैं 'ख़ुसरव' की पहेलीमैं 'मीर' की हमराज़ हूँ 'ग़ालिब' की सहेली
क्या क्या मंज़र देख रही हैं आँखें मेरीकब से उन उजले शीशों पर
अपना आप यूँ महसूस होता हैकि जैसे
ख़ौफ़ से मेरे लबआसमाँ की तरह नीले
हर शाख़ से ये नुक्ता-ए-पेचीदा है पैदापौदों को भी एहसास है पहना-ए-फ़ज़ा का
मैं अपने बंद कमरे में पड़ा हूँकि रौशनी भी उजालों की मुंतज़िर है
वो एब्नॉर्मल नहीं थासिर्फ़ उस को नॉर्मल बनने की हसरत थी
दुनिया पे ये है रौशनहर क़ौम का है मस्कन
मसामों से उबल कर आसमाँ कैसे सुलगते हैंअदम मशरूम बन कर कैसे ख़लियों से उभरता है
जहाँ में दानिश ओ बीनिश की है किस दर्जा अर्ज़ानीकोई शय छुप नहीं सकती कि ये आलम है नूरानी
क़ौमों के लिए मौत है मरकज़ से जुदाईहो साहिब-ए-मरकज़ तो ख़ुदी क्या है ख़ुदाई
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