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नज़्म
दस्तावेज़ी प्रॉसेस मुकम्मल हुआ
काहिनों ग़ैब-दानों की फ़ित्नागरी के ज़माने फ़ना हो गए
इरफ़ान शहूद
नज़्म
ज़वाल होता है कैसे ये देख मग़रिब को
जुमूद-ए-'ऐश-ओ-तरक़्क़ी से हैं निढाल ये लोग
अख़लाक़ अहमद आहन
नज़्म
है जिन में ज़ौक़-ए-आज़ादी वो ज़िंदानों में रहते हैं
वही बस्ती बसाते हैं जो वीरानों में रहते हैं