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नज़्म
दौलत के लिए जब औरत की इस्मत को न बेचा जाएगा
चाहत को न कुचला जाएगा ग़ैरत को न बेचा जाएगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तिरी नीची नज़र ख़ुद तेरी इस्मत की मुहाफ़िज़ है
तू इस नश्तर की तेज़ी आज़मा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो मेरे आसमाँ पर अख़्तर-ए-सुब्ह-ए-क़यामत है
सुरय्या-बख़्त है ज़ोहरा-जबीं है माह-ए-तलअत है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
वही है शौक़-ए-नौ-ब-नौ, वही जमाल-ए-रंग-रंग
मगर वो इस्मत-ए-नज़र, तहारत-ए-लब-ओ-दहन
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
हँस रहा है ज़िंदगी पर इस तरह माज़ी का हाल
ख़ंदा-ज़न हो जिस तरह इस्मत पे क़हबा का जमाल
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जिस की ख़ातिर तिरी ज़िल्लत भी गवारा थी मुझे
आज उसी ''पैकर-ए-इस्मत'' का ख़ता-कार हूँ मैं
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
शिद्दत-ए-इफ़्लास से जब ज़िंदगी थी तुझ पे तंग
इश्तिहा के साथ थी जब ग़ैरत ओ इस्मत की जंग