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नज़्म
भेजता है कभी पैग़ाम-ए-मोहब्बत तू ही
दिल-ए-मग़्मूम को है बाइ'स-ए-हुज्जत तू ही
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
गर मुकर्रर अर्ज़ करते हैं तो कहते हैं वो शोख़
हम से लेते हो मियाँ तकरार-ओ-हुज्जत ता-ब-कै