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नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
गर तो है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे