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नज़्म
मैं दूर कहीं तुम से बैठा इक दीप की जानिब तकता हूँ
इक बज़्म सजाए रक्खी है इक दर्द जगाए रखता हूँ
वसीम बरेलवी
नज़्म
इमकानों के हर कूचे में उम्मीदों की हर मुंडेर पर
मुस्तक़बिल के हर रस्ते में ख़्वाब की जोत जगाए रखना
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
चिड़ियाँ न चहचहाएँ कल सोएँ हम दोपहर तक
बंद है बन का मदरसा कोई हमें जगाए क्यों
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
फ़ित्ना-ए-ख़ुफ़ता जगाए उस घड़ी किस की मजाल
क़ैद हैं शहज़ादियाँ कोई नहीं पुर्सान-ए-हाल