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नज़्म
जाने कब पी थी अभी तक है मय-ए-ग़म का ख़ुमार
धुँदला धुँदला नज़र आता है जहान-ए-बेदार
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
ख़ुद-फ़रेबी बढ़ के जब बनती है एहसास-ए-शुऊ'र
जब जवाँ होता है अहल-ए-ज़र के तेवर में ग़ुरूर
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
सीने की हर एक जलन से समझौता कर के मैं ने
इन सारी बीती बातों को तारीकी में छोड़ दिया
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
इस लिए ख़ुदा ने आँखों में काँच भर दिया
और जहन्नम के लपकते हुए शोलों की जलन लहू में रख दी