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नज़्म
जितनी दुनिया में किताबें हैं रक़म कीं तू ने
जल्वा-अफ़रोज़ नज़र प्यारे क़लम कीं तू ने
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
हर जल्वा जहाँगीर था जिस वक़्त जवाँ थी
कहते हैं जिसे नूर-जहाँ नूर-ए-जहाँ थी
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
अब्र-ए-गौहर-बार बन कर हिन्द में आया था तू
अहल-ए-दुनिया के लिए पैग़ाम-ए-हक़ लाया था तू
सुदर्शन कुमार वुग्गल
नज़्म
है नज़र-अफ़रोज़ अगरचे जल्वा-ए-बर्क़-ए-तपाँ
ख़िरमन-ए-दहक़ाँ से लेकिन पूछ उस की दास्ताँ
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
ऐ दकन की सर-ज़मीं ऐ क़िबला-ए-हिन्दोस्ताँ
तेरे ज़र्रे मेहर हैं तेरी ज़मीं है आसमाँ
मयकश अकबराबादी
नज़्म
मोहब्बत जिस में लग़्ज़िश भी हुसूल-ए-कामरानी है
मोहब्बत जिस की हर काविश सुरूर-ए-जावेदानी है
ऋषि पटियालवी
नज़्म
आँख वालो हुस्न-ए-वहदत का तमाशा क्यों न हो
दिल है तो राज़-ए-हक़ीक़त की तमन्ना क्यों न हो