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नज़्म
मुद्दई तू ने अभी देखा नहीं शाइ'र का दिल
जल्वा-हा-ए-रंग-ओ-बू होते हैं जिस में मुंतक़िल
अमजद नजमी
नज़्म
इन्ही फ़सानों में खुलते थे राज़-हा-ए-हयात
उन्हें फ़सानों में मिलती थीं ज़ीस्त की क़द्रें
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
उस का जल्वा है अयाँ गुल-हा-ए-रंगा-रंग से
सब्ज़े में शाख़ों में घर उस ने किया सौ ढंग से
हामिद हसन क़ादरी
नज़्म
दिल पीत की आग में जलता है हाँ जलता रहे उसे जलने दो
इस आग से लोगो दूर रहो ठंडी न करो पंखा न झलो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अगर ऐ शम'-ए-दिल जलना ही था तुझ को तो जलना था
किसी बेकस की तुर्बत पर चराग़-ए-नीम-जाँ हो कर
अहसन अहमद अश्क
नज़्म
सिखा रही है ख़िरद तुझ को फ़न्न-ए-शीशा-गरी
अजब नहीं जो परेशाँ हो कारोबार-ए-हयात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
हुस्न की जल्वा-गह-ए-नाज़ का अफ़्सूँ तस्लीम
यही क़ुर्बां--गह-ए-अरबाब-ए-नज़र क्यूँ हो जाए