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नज़्म
है मिरी जुरअत से मुश्त-ए-ख़ाक में ज़ौक़-ए-नुमू
मेरे फ़ित्ने जामा-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद का तार-ओ-पू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दीवारों के नीचे आ आ कर यूँ जम्अ हुए हैं ज़िंदानी
सीनों में तलातुम बिजली का आँखों में झलकती शमशीरें
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
झड़ियों की मस्तियों से धूमें मचा रहे हैं
पड़ते हैं पानी हर जा जल-थल बना रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मिरे अफ़्कार पे ये कैसी वीरानी सी छाई है
बहुत कुछ सोचता हूँ फिर भी अब सोचा नहीं जाता
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
जम्अ' हुए हैं चौराहों पर आ के भूके और गदागर
एक लपकती आँधी बन कर एक भबकता शो'ला हो कर
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जब दिन ढल जाता है, सूरज धरती की ओट में हो जाता है
और भिड़ों के छत्ते जैसी भिन-भिन
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मस्जिदों में सब जम्अ' हो जाएँगे ख़ुर्द-ओ-कलाँ
दूर हो दिल की कुदूरत ये सवाल-ए-ईद है