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नज़्म
मेरी महबूब उन्हें भी तो मोहब्बत होगी
जिन की सन्नाई ने बख़्शी है उसे शक्ल-ए-जमील
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जमील मज़हरी
नज़्म
फ़रेब खाए हैं रंग-ओ-बू के सराब को पूजता रहा हूँ
मगर नताएज की रौशनी में ख़ुद अपनी मंज़िल पे आ रहा हूँ
जमील मज़हरी
नज़्म
अगर इस गुलशन-ए-हस्ती में होना ही मुक़द्दर था
तो मैं ग़ुंचों की मुट्ठी में दिल-ए-बुलबुल हुआ होता
जमील मज़हरी
नज़्म
पूरा चाँद निकलता है तो भेड़िया अक्सर रोता है
रात को कुत्ता भौं भौं करता दिन को उल्लू सोता है