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नज़्म
था यहाँ तक हम पे जौर-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-बुलंद
मोतियों के बदले हम को कंकर आते थे पसंद
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
तेरे जौर-ओ-सितम-ओ-नाज़-ओ-तलव्वुन के क़तील
काँप कर कहते हैं नैरंगी-ए-क़िस्मत तुझ को
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
नाज़नीनों का ये आलम मादर-ए-हिन्द आह आह
किस के जौर-ए-ना-रवा ने कर दिया तुझ को तबाह?
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रहेगा यूँ लबों पर शिकवा-ए-जौर-ए-ख़िज़ाँ कब तक
सताएगा भला नाज़ुक दिलों को ये जहाँ कब तक
शौकत परदेसी
नज़्म
इब्न-ए-आदम या'नी ये पर्वर्दा-ए-जौर-ए-फ़लक
शायद अब इस पर मशिय्यत मेहरबाँ होने को है
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
देखो हम कैसे बसर की इस आबाद ख़राबे में
कभी ग़नीम-ए-जौर-ओ-सितम के हाथों खाई ऐसी मात
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हामी-ए-जौर-ओ-सितम हर तरह माला-माल था
जिस की लाठी थी उसी की भैंस थी ये हाल था