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नज़्म
था दिमाग़-ओ-दिल में सहबा-ए-क़नाअत का सुरूर
थी जवाब-ए-सतवत-ए-शाही तिरी तब-ए-ग़यूर
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
जिस का मज़हब अम्न-जूई जिस का मशरब सुल्ह-ए-कुल
जिस के नग़्मों की लताफ़त है जवाब-ए-बर्ग-ए-गुल
अमजद नजमी
नज़्म
कहाँ की ख़ुसरवी आज़ादगी सरमस्ती-ओ-शोख़ी
वही अंधा कुआँ ख़न्नास सौतेले रवय्या का
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
जवाब-ए-जश्न-ए-जम है गर्मी-ए-हंगामा-ए-गुलशन
कि ले कर कश्ती-ए-मय तख़्त परियों के उतरते हैं
नज़्म तबातबाई
नज़्म
दिल बन चुका है मस्कन-ए-सोज़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़
सीना जवाब-ए-बर्क़-ए-तपाँ है तिरे बग़ैर
शैदा अम्बालवी
नज़्म
ख़ुद हुस्न ने दिया भी नहीं है जवाब-ए-इश्क़
और इश्क़ है कि हुस्न-ए-सरापा अभी से है