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नज़्म
हूरें आ कर ख़ुल्द से तौफ़-ए-मज़ार-ए-पाक को
झाड़ती पलकों से हैं गर्द-ओ-ख़स-ओ-ख़ाशाक को
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
नज़्म
झड़ती साँसो का उसे मैं ने हवाला भी दिया
सर्द होती हुई नब्ज़ें भी उसे पकड़ाईं
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी
नज़्म
उन ज़मानों में सपने साँपों के बिल नहीं थे
अनंत नागा की झड़ती चमड़ी संपोलियों का ख़ुदा नहीं थी
रज़ी हैदर गिलानी
नज़्म
भला हूरब की झाड़ी का वो रम्ज़-ए-आतिशीं क्या था
मगर हूरब की झाड़ी क्या ये किस से किस की निस्बत है
जौन एलिया
नज़्म
उक़ाबी शान से झपटे थे जो बे-बाल-ओ-पर निकले
सितारे शाम के ख़ून-ए-शफ़क़ में डूब कर निकले
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये बातें झूटी बातें हैं ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम 'इंशा'-जी का नाम न लो क्या 'इंशा'-जी सौदाई हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गुल हुई जाती है अफ़्सुर्दा सुलगती हुई शाम
धुल के निकलेगी अभी चश्मा-ए-महताब से रात