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नज़्म
आमिर रियाज़
नज़्म
यही मंज़िलें थीं यही रास्ता था
वही नीलगूँ जगमगाहट की उड़ती चका-चौंद एक पल को झलकता हुआ उस का पैकर
सुहैल अहमद ख़ान
नज़्म
झलकता है किसी का हुस्न फ़िरदौस-ए-नज़र बन कर
किसी के अश्क सब्ज़े पर मचलते हैं गुहर बन कर