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नज़्म
ये लड़का पूछता है अख़्तर-उल-ईमान तुम ही हो
ये लड़का पूछता है जब तो मैं झल्ला के कहता हूँ
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हम ने हर दौर में मेहनत के सितम झेले हैं
हम ने हर दौर के हाथों को हिना बख़्शी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
'अहिल्याबाई' 'दमन' 'पदमिनी' ओ 'रज़िया' ने
यहीं के पेड़ों की शाख़ों में डाले थे झूले