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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिदाल में सर से पाँव तक सुर्ख़ हो रहा था तो उन की ख़ातिर
सो उस को महबूब जानता हूँ
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
''एक हंगामे पे मौक़ूफ़ थी घर की रौनक़''
मुफ़्लिसी साथ लिए आई थी इक जंग-ओ-जिदाल
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है
मिरी फ़ितरत को ख़ूँ-रेज़ी के अफ़्साने से रग़बत है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
एक सूरत पर नहीं रहता किसी शय को क़रार
ज़ौक़-ए-जिद्दत से है तरकीब-ए-मिज़ाज-ए-रोज़गार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लो इक जी-दार बिसाती ने हर चीज़ लगा दी चार आने
कंघी जापानी चार आने शीशा बग़्दादी चार आने