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नज़्म
ज़िंदगी कुछ और शय है 'इल्म है कुछ और शय
ज़िंदगी सोज़-ए-जिगर है 'इल्म है सोज़-ए-दिमाग़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उफ़ री शौहर की चिता पर शोला-अफ़्रोज़ी तिरी
जीते-जी सोज़-ए-मोहब्बत में जिगर-सोज़ी तिरी
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
तू ने की तख़्लीक़ ऐ महव-ए-ख़िराम-ए-जुस्तुजू
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर से काएनात-ए-रंग-ओ-बू
मयकश अकबराबादी
नज़्म
क्यों न तड़पाए हमें अपने वतन की हालत
सोज़-ए-दिल रखते हैं हम दर्द-ए-जिगर रखते हैं
सरदार नौबहार सिंह साबिर टोहानी
नज़्म
ये वो बिजली थी तुझे जिस के असर ने फूँका
रफ़्ता रफ़्ता तपिश-ए-सोज़-ए-जिगर ने फूँका
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
ज़िंदगी सिलसिला-ए-सोज़-ए-जिगर है ऐ दोस्त
आज आफ़ात से बेचैन बशर है ऐ दोस्त
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
पहले तो हुस्न-ए-अमल हुस्न-ए-यक़ीं पैदा कर
फिर इसी ख़ाक से फ़िरदौस-ए-बरीं पैदा कर