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नज़्म
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अफ़्लास-ज़दा दहक़ानों के हल बैल बिके खलियान बिके
जीने की तमन्ना के हाथों जीने के सब सामान बिके
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिए जाता है आख़िर कौन उस के घर में है जिस के
लिए ये सख़्तियाँ सहता है तकलीफ़ें उठाता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
राजा की ये बात सुनी तो कहने लगा हम-साया
जिए वो सास कि चूहिया को भी जिस ने भैंस बनाया
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
जिन को ममनूआ ज़मीनों की हिकायात कहा जाता है
तीरगी पर जिसे लिक्खी हुई वो रात कहा जाता है
बुशरा एजाज़
नज़्म
वर्ना फिर तो इस शहर में क्या मरे और क्या जिए
टार की लम्बी सड़क हो उस पे हों पीले दिए