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नज़्म
जोहद-ए-हस्ती की कड़ी धूप में थक जाने पर
जिस की आग़ोश ने बख़्शा है मुझे माँ का ख़ुलूस
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
नहीं हो तुम मगर वो चाँद तारे याद आते हैं
मिरी नज़रों से ओझल अब मक़ाम-ए-जोहद-ए-हस्ती है
शौकत परदेसी
नज़्म
ये जोहद-ओ-कश्मकश ये ख़रोश-ए-जहाँ भी देख
अदबार की, सरों पे घनी बदलियाँ भी देख
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हमारे लिए सिर्फ़ रोटी की जिद्द-ओ-जोहद
औरतों के बरहना बदन की तमन्ना से आगे कहीं कुछ नहीं है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
उम्र भर की जिद्द-ओ-जोहद-ए-शौक़ का हासिल रहे
तीरा-बख़्त आँखों में ऐसे ख़्वाब के पैकर बसे
महमूद अयाज़
नज़्म
तो मेरी ज़ेहन के मशरिक़ से इक सूरज उभरता है
शुआओं में पयाम-ए-जोहद की ताबिंदगी ले कर
नियाज़ हैदर
नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो