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नज़्म
क़ाफ़िले वालों को मंज़िल का पता मिल जाएगा
जबकि ऐ 'तकमील' नेहरू हैं अमीर-ए-कारवाँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
फ़क़त फूलों की ख़ुश-रंगी से ऐ 'तकमील' क्या हासिल
जो दुनिया को बसाना है तो निकहत की ज़रूरत है
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
फ़क़त फूलों की ख़ुश-रंगी से ऐ 'तकमील' क्या हासिल
जो दुनिया को बसाना है तो निकहत की ज़रूरत है
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
क़फ़स का दर बना देते हैं रश्क-ए-बाब-ए-आज़ादी
जो अहल-ए-होश हैं 'तकमील' ज़िंदानों में रहते हैं
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
यहीं की थी मोहब्बत के सबक़ की इब्तिदा मैं ने
यहीं की जुरअत-ए-इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ मैं ने