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नज़्म
मुझे अगर की ख़ुश्बू क्यूँ आती है अपने अंदर से
क्यूँ मेरी आँखों में कड़वे तेल का दीप सा जलता है
ख़लीक़ुर्रहमान
नज़्म
सुना है इन दिनों कुछ और कड़वा हो गया है वो
हैं पत्ते ज़र्द पहले से ज़रा सा झुक गया है वो