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नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
उत्तर दक्खिन पूरब पच्छिम हर सम्त से इक चीख़ आती है
नौ-ए-इंसाँ काँधों पे लिए गाँधी की अर्थी जाती है
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
क्यूँ तबीअ'त को न हो बे-ख़ुदी-ए-शौक़ पे नाज़
हज़रत-ए-अब्र के क़दमों पे है ये फ़र्क़-ए-नियाज़