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नज़्म
है तिरी ता'मीर में मुज़्मर वही शान-ए-वफ़ा
तेरी हर ख़िश्त-ए-कुहन है जौहर-ए-कान-ए-वफ़ा
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
ज़माना फेंक देगा ख़ुद उन्हें क़अ'र-ए-हलाकत में
वो अपने हाथ से होंगे ख़ुद अपनी क़ब्र के बानी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
जिस ज़मीं पर भी खिला मेरे लहू का परचम
लहलहाता है वहाँ अर्ज़-ए-फ़िलिस्तीं का अलम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
चमक हीरे से बढ़ कर ऐ तबस्सुम तुझ में पिन्हाँ है
उन्हीं होंटों पे ज़ौ बिखरा तू जिन होंटों को शायाँ है