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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
वो जिन की फ़िक्र में रहती थी मैं 'वफ़ा' बेचैन
ग़म-ओ-ख़ुशी के मिरे तर्जुमान हो गए हैं
अमतुल हई वफ़ा
नज़्म
कुछ ख़बर ऐ हिन्द वालो है कि तुम हो बे-ख़बर
कर रहा है ज़ुल्म ज़ालिम क़ौम के हर फ़र्द पर
वफ़ा बराही
नज़्म
कि अपनी अज़्मत-ए-ख़ुफ़्ता को नेज़ों से जगा दूँगा
मज़ा बे-जा जसारत का हरीफ़ों को चखा दूँगा
वफ़ा बराही
नज़्म
मस्त थी उस की अदाएँ ख़ूब था उस का शबाब
आँखें नर्गिस ज़ुल्फ़ सुम्बुल आरिज़-ए-रंगीं गुलाब
वफ़ा बराही
नज़्म
ऐ वफ़ा खुलते हैं तुझ पर आज क्या क्या राज़ देख
चल चमन में बुलबुल-ओ-गुल के नियाज़-ओ-नाज़ देख
मेला राम वफ़ा
नज़्म
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
क़ुमरियाँ मीठे सुरों के साज़ ले कर आ गईं
बुलबुलें मिल-जुल के आज़ादी के गुन गाने लगीं