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नज़्म
परे है चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम से मंज़िल मुसलमाँ की
सितारे जिस की गर्द-ए-राह हों वो कारवाँ तो है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
यहाँ पर शोख़ियों की बे-कराँ मौजें बहाईं हैं
यहाँ बज़में सजाई हैं यहाँ धूमें मचाई हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
और क़ज़्ज़ाक़-ए-सिनाँ-दस्त का धुँदला साया
अज़-कराँ-ता-ब-कराँ दहर पे मंडलाने लगे