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नज़्म
ग़म का मारा हर कोई ख़ुशियों का ठुकराया लगे
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
नज़ीर फ़तेहपूरी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कुछ इस तरह से बढ़ा दिल में ज़ौक़-ए-आज़ादी
कि रफ़्ता रफ़्ता तमन्ना जवान होती गई
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
बज़्म-ए-अंजुम की हर एक तनवीर धुँदली हो गई
रख दिया नाहीद ने झुँझला के हाथों से सितार
इब्न-ए-सफ़ी
नज़्म
निगार-ए-शाम-ए-ग़म मैं तुझ से रुख़्सत होने आया हूँ
गले मिल ले कि यूँ मिलने की नौबत फिर न आएगी