aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kaasa-e-savaal"
इक मिरा दिलमिरा कासा-ए-जाँ
रात के हाथ में इक कासा-ए-दरयुज़ा-गरीये चमकते हुए तारे ये दमकता हुआ चाँद
हमारे हाथ में बस कासा-ए-तलब ही रहा
इस कासा-ए-तही में डालोताकि सबात की ख़ातिर
शोला-बार सहरा मेंकास-ए-दर्द ले के निकले
कासा-ए-नमनाक से उस नेग़रज़ की गंदगी
कहकशाएँ बनाई गईंफिर उसी कासा-ए-दह्र से
कासा-ए-दहर को मामूर-ए-करम कर डालें
रूह के कासा-ए-गदाई कोचार टुकड़ों का आसरा भी नहीं
ग़ैरत को फ़रोख़्त करने वालोइक कासा-ए-ज़र क़लम की क़ीमत
कुछ मदीने की खुजूरों के तबक़कासा-ए-सर पे सजा लाए हैं
इक कासा-ए-तही के सिवा कुछ भी नहीं हैंउसे
क्या कासा-ए-सर है ख़ून से तर?पैवंद-ए-क़बा दुश्नाम बहुत
बरस पड़ेंगे मोतिए के फूल बन केइस मुहीब कासा-ए-हयात में
क़र्ज़ की तरह हुस्न की ख़ैरातरह गए हाथ कासा-ए-शुबहात
एक गाली जो कीचड़ के मानिंद चस्पाँ हुईहोंट जो कासा-ए-मुफ़लिसी बन गए
दिल के सादा वरक़ पे कुछ तो उतारभर मिरे कासा-ए-ख़याल को तो
कि कासा-ए-जाँ में ऐसी ख़ैरात मिलेकि हम अंदर से सँवर जाएँ
लो कासा-ए-चश्म हुआ ख़ालीलो दिल में नहीं अब दर्द कोई
कासा-ए-दिल की गदाई हमें मंज़ूर नहींइस दौर में अब कोई भी मंसूर नहीं
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