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नज़्म
आशिक़-ए-बिन्त-ए-एनब को आप कहते हैं वली
फ़ाक़ा-मस्ती में भी हर दम कर रहा है मय-कशी
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
सफ़ा-ए-दिल को क्या आराइश-ए-रंग-ए-तअल्लुक़ से
कफ़-ए-आईना पर बाँधी है ओ नादाँ हिना तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ कि तेरी ख़िदमतें सरमाया-दार-ए-इल्म हैं
तेरा मक़्सद ज़ीस्त का आग़ाज़-ए-ख़ुश-अंजाम है
मयकश अकबराबादी
नज़्म
नापना सहल नहीं है तिरी अज़्मत का फ़िराक़
क़द्र करना किसी माहिर की नहीं कोई मज़ाक़