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नज़्म
सनोबर की घनी शाख़ों का वो कैफ़-आफ़रीं साया
कि जिस में इज़्तिराब-ए-ज़िंदगी ने भी सुकूँ पाया
मयकश अकबराबादी
नज़्म
ऐ दिल-ए-अफ़सुर्दा पीने की बहारें आ गईं
काली काली बदलियाँ फिर आसमाँ पर छा गईं
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
सुरूर-ओ-कैफ़ में खोया हुआ था दिल-कुशा मंज़र
मसर्रत-आफ़रीं था सर-ब-सर बरसात का मंज़र
ऋषि पटियालवी
नज़्म
साजिदा ज़ैदी
नज़्म
है अब तक सेहर सा छाया तिरी जादू-नवाई का
दिल-ए-उर्दू पे अब तक दाग़ है तेरी जुदाई का
मयकश अकबराबादी
नज़्म
हर जल्वा जहाँगीर था जिस वक़्त जवाँ थी
कहते हैं जिसे नूर-जहाँ नूर-ए-जहाँ थी
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
ऐ दकन की सर-ज़मीं ऐ क़िबला-ए-हिन्दोस्ताँ
तेरे ज़र्रे मेहर हैं तेरी ज़मीं है आसमाँ
मयकश अकबराबादी
नज़्म
मोहब्बत जिस में लग़्ज़िश भी हुसूल-ए-कामरानी है
मोहब्बत जिस की हर काविश सुरूर-ए-जावेदानी है
ऋषि पटियालवी
नज़्म
इस लताफ़त-कदा-ए-केफ़ में अफ़्सूँ हैं बहुत
न तिरे जिस्म का संदल न तिरे लब के गुलाब