aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kaifi"
उठ मिरी जान मिरे साथ ही चलना है तुझेक़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज
कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ हैवो जो अपना था वही और किसी का क्यूँ है
ये किस तरह याद आ रही हो ये ख़्वाब कैसा दिखा रही होकि जैसे सच-मुच निगाह के सामने खड़ी मुस्कुरा रही हो
अपने हाथों को पढ़ा करता हूँकभी क़ुरआँ कभी गीता की तरह
इक बरस और कट गया 'शारिक़'रोज़ साँसों की जंग लड़ते हुए
राम बन-बास से जब लौट के घर में आएयाद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती हैआज की रात न फ़ुट-पाथ पे नींद आएगी
डरता हूँ कहीं ख़ुश्क न हो जाए समुंदरराख अपनी कभी आप बहाता नहीं कोई
ज़िंदगी नाम है कुछ लम्हों काऔर उन में भी वही इक लम्हा
फिर भी इक रात में सौ तरह के मोड़ आते हैंकाश तुम को कभी तंहाई का एहसास न हो
मैं ये सोच कर उस के दर से उठा थाकि वो रोक लेगी मना लेगी मुझ को
चाँद टूटा पिघल गए तारेक़तरा क़तरा टपक रही है रात
मुद्दतों मैं इक अंधे कुएँ में असीरसर पटकता रहा गिड़गिड़ाता रहा
रूह बेचैन है इक दिल की अज़िय्यत क्या हैदिल ही शोला है तो ये सोज़-ए-मोहब्बत क्या है
चीर के साल में दो बार ज़मीं का सीनादफ़्न हो जाता हूँ
शगुफ़्तगी का लताफ़त का शाहकार हो तुमफ़क़त बहार नहीं हासिल-ए-बहार हो तुम
जब भी चूम लेता हूँ उन हसीन आँखों कोसौ चराग़ अँधेरे में झिलमिलाने लगते हैं
एक दो ही नहीं छब्बीस दिएएक इक कर के जलाए मैं ने
दोस्त! मैं देख चुका ताज-महल.....वापस चल
अब और क्या तिरा बीमार बाप देगा तुझेबस इक दुआ कि ख़ुदा तुझ को कामयाब करे
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